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मो षु त्वा॑ वा॒घत॑श्च॒नारे अ॒स्मन्नि री॑रमन्। आ॒रात्ता॑च्चित्सध॒मादं॑ न॒ आ ग॑ही॒ह वा॒ सन्नुप॑ श्रुधि ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mo ṣu tvā vāghataś canāre asman ni rīraman | ārāttāc cit sadhamādaṁ na ā gahīha vā sann upa śrudhi ||

पद पाठ

मो इति॑। सु। त्वा॒। वा॒घतः॑। च॒न। आ॒रे। अ॒स्मत्। नि। री॒र॒म॒न्। आ॒रात्ता॑त्। चि॒त्। स॒ध॒ऽमाद॑म्। नः॒। आ। ग॒हि॒। इ॒ह। वा॒। सन्। उप॑। श्रु॒धि॒ ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सत्ताईस ऋचावाले बत्तीसवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में कौन दूर और समीप में रक्षा करने योग्य होते हैं, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् राजा ! (वाघतः) मेधावी जन आपके (आरे) दूर (चन) और (अस्मत्) हम से दूर (मो, सु, रीरमन्) मत रमें। निरन्तर आपके समीप होते हुए (त्वा) आपको रमावें। (आरात्तात्) दूर में (चित्) भी आप (नः) हमारे (सधमादम्) उस स्थान को कि जिसमें एक साथ आनन्द करते हैं (आ, गहि) आओ (इह, वा) यहाँ प्रसन्न (सन्) होते हुए हमारे वचनों को (नि, उप, श्रुधि) समीप में सुनो ॥१॥
भावार्थभाषाः - जिन मनुष्यों के समीप बुद्धिमान् धार्मिक, विद्वान्जन और दूर में दुष्ट जन हैं, वे सदैव सुख पाते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ के दूरे समीपे च रक्षणीया इत्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् राजन् ! वाघतस्तवारे चनाप्यस्मदारे मो सुरीरमन्। सततं तवारे सन्तस्त्वा रमयन्तु। आरात्ताच्चित्वं नः सधमादमा गहीह वा प्रसन्नः सन्नस्माकं वचांसि न्युप श्रुधि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मो) निषेधे (सु) (त्वा) त्वाम् (वाघतः) मेधाविनः। वाघत इति मेधाविनाम। (निघं०३.१५)। (चन) अपि (आरे) समीपे दूरे वा (अस्मत्) (नि) (रीरमन्) रमन्ताम् (आरात्तात्) दूरे (चित्) अपि (सधमादम्) यत्र सह माद्यन्त्यानन्दन्ति तम् (नः) अस्माकम् (आ) (गहि) आगच्छ प्राप्नुहि वा (इह) (वा) (सन्) (उप) (श्रुधि) ॥१॥
भावार्थभाषाः - येषां मनुष्याणां समीपे मेधाविनो धार्मिका विद्वांसो वसन्ति दुष्टांश्च दूरे तिष्ठन्ति ते सदैव सुखं लभन्ते ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इंद्र, मेधावी, धन, विद्येची कामना करणारे, रक्षक, राजा, ईश्वर, जीव, धनसंचय, ईश्वर व नौकानयन करणाऱ्यांच्या गुण कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - ज्या माणसांजवळ बुद्धिमान, धार्मिक, विद्वान लोक असतात व दुष्ट लोक दूर असतात ती सदैव सुखी असतात. ॥ १ ॥